As your morning alarm blares, you mutter to yourself, “Why did I set it so early?” While brushing your teeth, you think, “I need a haircut... unless?” Rushing out the front door, you reach for your keys and realize they’re not there. Frustrated you shout, “I can’t do anything right!” just in time to notice your neighbor.
जैसे-जैसे आपका सुबह का अलार्म बजता है आप ख़ुद से बड़बड़ाते हुए कहते हैं, “मैंने इतनी जल्दी का अलार्म लगाया ही क्यों? अपना दन्त मंजन करते हुए आप सोचते हैं, “मुझे बाल कटाने की ज़रूरत है... लेकिन अगर...? जल्दी में अपने घर से बाहर निकलते हुए आप अपनी चाबियाँ खोजते हैं और आपको एहसास होता है कि वह तो आपके पास हैं ही नहीं। आप परेशान हो कर चिल्लाते हैं, “मैं कुछ भी ठीक से नहीं कर सकता!” और तभी आपका ध्यान अपने पास खड़े पड़ोसी पर जाता है।
Being caught talking to yourself can feel embarrassing, and some people even stigmatize this behavior as a sign of mental instability. But decades of psychology research show that talking to yourself is completely normal. In fact, most, if not all, of us engage in some form of self-talk every single day. So why do we talk to ourselves? And does what we say matter?
स्वयं से बातें करते हुए पकड़े जाने से आपको शर्मिन्दगी महसूस हो सकती है, और कुछ लोग तो इस व्यवहार को मानसिक अस्थिरता के संकेत के रूप में निन्दित भी करते हैं। पर दशकों के मनोवैज्ञानिक शोध बताते हैं कि स्वयं से बातें करना एक पूर्णतः सामान्य बात है। दरअसल, हम में से अधिकतर लोग किसी न किसी रूप में, हर दिन, स्वयं से बातें करते हैं। तो हम स्वयं से बातें करते क्यों हैं? और क्या जो हम कहते हैं उससे कोई फ़र्क़ भी पड़ता है?
Self-talk refers to the narration inside your head,
स्वयं से की बातें
sometimes called inner speech. It differs from mental imagery or recalling facts and figures. Specifically, psychologists define self-talk as verbalized thoughts directed toward yourself or some facet of your life. This includes personal conversations like “I need to work on my free throw.” But it also includes reflections you have throughout the day, like “The gym is crowded tonight. I’ll come back tomorrow.” And while most self-talk in adults tends to be silent, speaking to yourself out loud also falls into this category.
आपके मस्तिष्क में हो रहे कथन को सन्दर्भित करती हैं जिसे आन्तरिक वाणी भी कहा जाता है। यह मानसिक कल्पनाओं या तथ्यों और आंकड़ों को याद करने से भिन्न है। विशेष रूप से, मनोवैज्ञानिक आत्म-चर्चा को ऐसे मौखिक विचारों के रूप में परिभाषित करते हैं जो आपकी या आपके जीवन के किसी पहलू की ओर निर्देशित होते हैं। इसमें निजी वार्तालाप भी शामिल है जैसे, “मुझे अपने गेंद फेंकने के तरीक़े पर काम करने की आवश्यकता है।” पर इसमें आपके ऐसे विचार भी शामिल हैं जो आपको दिन-भर में आते हैं, जैसे, “आज व्यायामशाला में बहुत भीड़ है। मैं कल आऊँगा।” और जहाँ वयस्कों में अधिकतर आत्म-चर्चा मौन होती हैं वहीं स्वयं को यह सब कुछ बोल कर कहना भी इस श्रेणी में आता है।
In fact, psychologists believe our first experiences with self-talk are mostly vocal, as children often speak to themselves out loud as they play. In the 1930s, Russian psychologist Lev Vygotsky hypothesized that this kind of speech was actually key to development. By repeating conversations they’ve had with adults, children practice managing their behaviors and emotions on their own. Then, as they grow older, this outward self-talk tends to become internalized, morphing into a private inner dialogue.
दरअसल, मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि आत्म-चर्चा के हमारे पहले अनुभव अधिकतर मौखिक होते हैं एक बच्चे के रूप में खेलते-खेलते ख़ुद से बातें करते हुए। 1930 के दशक में, एक रूसी मनोवैज्ञानिक, लेव विगोट्स्की ने यह परिकल्पना बनाई कि इस तरह की वाणी हमारे विकास के लिये असल में आवश्यक है। वयस्कों से की गई वार्तालाप को दोहरा कर बच्चे अपने व्यवहार और भावनाओं को स्वयं नियन्त्रित करने का अभ्यास करते हैं। फिर, जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं यह बाहरी आत्म-चर्चा आन्तरिक बनती जाती है एक निजी आन्तरिक संवाद में रूपान्तरित होते हुए।
We know this internal self-talk is important, and can help you plan, work through difficult situations, and even motivate you throughout the day. But studying self-talk can be difficult. It relies on study subjects clearly tracking a behavior that’s spontaneous and often done without conscious control. For this reason, scientists are still working to answer basic questions, like, why do some people self-talk more than others? What areas of the brain are activated during self-talk? And how does this activation differ from normal conversation? One thing we know for certain, however, is that what you say in these conversations can have real impacts on your attitude and performance.
हम जानते हैं कि यह आन्तरिक आत्म-चर्चा महत्वपूर्ण है और आपको योजना बनाने, कठिन परिस्थितियों में से गुज़रने, और दिन भर में आपको प्रेरित करने में भी सहायक हो सकती है। पर आत्म-चर्चा पर शोध करना कठिन हो सकता है। इसमें शोध के पात्रों द्वारा अपने ऐसे व्यवहार पर स्पष्ट रूप से नज़र रखने पर आश्रित होना पड़ता है जो स्वाभाविक हो और बिना सचेत नियन्त्रण के दर्शाया गया हो। इसी कारण से, वैज्ञानिक आज तक भी मूल प्रश्नों का उत्तर देने पर ही काम कर रहे हैं जैसे, कुछ लोग दूसरों से अधिक स्वयं से बातें क्यों करते हैं? आत्म-चर्चा करते हुए मस्तिष्क के कौन से भाग सक्रिय हो जाते हैं? और यह सक्रियता एक सामान्य वार्तालाप से भिन्न कैसे होती है? लेकिन, एक बात जो हम निश्चित रूप से जानते हैं वह है कि आप इन वार्तालापों में जो भी कहते हैं उसका आपकी अभिवृत्ति और प्रदर्शन पर वास्तविक प्रभाव पड़ सकता है।
Engaging in self-talk that’s instructional or motivational has been shown to increase focus, boost self-esteem, and help tackle everyday tasks. For example, one study of collegiate tennis players found that incorporating instructional self-talk into practice increased their concentration and accuracy.
शोध दिखाते हैं कि ऐसी आत्म-चर्चा में संलग्न होना जो निर्देशात्मक या प्रेरक हो ध्यान केन्द्रित करती है, आत्मसम्मान को बढ़ावा देती है, और हर दिन के कार्यों को निपटाने में सहायक होती है। उदाहरण के लिए, महाविद्यालय के टेनिस खिलाड़ियों पर हुए एक शोध ने पाया कि निर्देशात्मक आत्म-चर्चा को अभ्यास में समाविष्ट करने से उनकी एकाग्रता और सटीकता बढ़ी।
And just as chatting to a friend can help decrease stress, speaking directly to yourself may also help you regulate your emotions. Distanced self-talk is when you talk to yourself, as if in conversation with another person. So, rather than “I’m going to crush this exam,” you might think, “Caleb, you are prepared for this test!” One study found that this kind of self-talk was especially beneficial for reducing stress when engaging in anxiety-inducing tasks, such as meeting new people or public speaking.
और वैसे ही जैसे किसी मित्र से बात करना तनाव कम करने में सहायक हो सकता है स्वयं से सीधे बात करना भी आपको अपनी भावनाओं को विनियमित करने में सहायक हो सकता है। अलगाव वाली आत्म-चर्चा वह होती है जब आप स्वयं से ऐसे बातें करते हैं जैसे आप किसी और से वार्तालाप कर रहे हैं। तो, यह सोचने की बजाय “मैं इस परीक्षा को परास्त कर दूँगा,” आप सोच सकते हैं, “केलिब, तुम इस परीक्षा के लिए तैयार हो!” एक शोध ने पाया कि इस तरह की आत्म-चर्चा विशेष रूप से ऐसे कार्यों के तनाव को कम करने के लिए लाभकारी होती है जो व्यग्रता-उत्प्रेरक होती हैं, जैसे नए लोगों से मिलना या सार्वजनिक भाषण देना।
But where positive self-talk can help you, negative self-talk can harm you.
पर जहाँ सकारात्मक आत्म-चर्चा आपकी सहायता कर सकती है
Most people are critical of themselves occasionally, but when this behavior gets too frequent or excessively negative, it can become toxic. High levels of negative self-talk are often predictive of anxiety in children and adults. And those who constantly blame themselves for their problems and ruminate on those situations typically experience more intense feelings of depression.
वहीं नकारात्मक आत्म-चर्चा आपको हानि पहुँचा सकती है। अधिकतर लोग अपने बारे में कभी-कभी ही आलोचनात्मक होते हैं पर जब यह व्यवहार अक्सर होने लगे या अत्यधिक नकारात्मक होने लगे तो यह विषैला बन सकता है। ऊँचे स्तरों की नकारात्मक आत्म-चर्चा अक्सर बच्चों और वयस्कों में व्यग्रता का संकेत देती हैं। और जो लोग स्वयं को हमेशा अपनी परेशानियों के लिए दोष देते रहते हैं और उन परिस्थितियों का चिन्तन करते रहते हैं उनको आम तौर पर अवसाद की अधिक तीव्र भावनाओं का अनुभव होता है।
Today, there’s a field of psychological treatment called cognitive behavioral therapy, or CBT, which is partially focused on regulating the tone of self-talk. Cognitive behavioral therapists often teach strategies to identify cycles of negative thoughts and replace them with neutral or more compassionate reflections. Over time, these tools can improve one's mental health.
अब, एक मनोवैज्ञानिक उपचार का क्षेत्र होता है जिसे संज्ञानात्मक व्यावहारजन्य चिकित्सा कहते हैं जो आंशिक रूप से आत्म-चर्चा के लहजे पर केन्द्रित है। संज्ञानात्मक व्यावहारजन्य चिकित्सक अधिकतर ऐसी रणनीतियाँ सिखाते हैं जिनसे नकारात्मक विचारों के जाल को पहचाना जा सके और उनको निष्पक्ष या अधिक सहानुभूतिशील विचारों से बदला जा सके। समय के साथ, यह साधन किसी के मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं।
So the next time you find yourself chatting with yourself, remember to be kind. That inner voice is a partner you’ll be talking to for many years to come.
तो अगर आप अगली बार स्वयं को स्वयं से बातें करते हुए पाएँ तो सहानुभूतिशील होना याद रखें। वह आन्तरिक वाणी आपकी ऐसी साथी है जिससे आप आने वाले कई वर्ष बात करेंगे।